'हम जानते हैं कि संघ का एजेंडा भारत को हिन्दूराष्ट्र बनाने का है। इस उपक्रम में उनकी कोशिश देश के शैक्षणिक संस्थानों पर कब्जा जमाने की है। लेकिन यह भारत देश धर्म की संकीर्ण परिभाषा से बहुत बड़ा है।
आज भले ही शास्त्रार्थ की परंपरा शिथिल पड़ गई हो, विश्वविद्यालयों में अध्यापक वर्ग की काहिली के चलते स्वतंत्र चिंतन का वातावरण न बन पा रहा हो, लेकिन अपने अनजाने में संघ व सरकार ने विश्वविद्यालयों की सुप्त चेतना में सिहरन पैदा कर दी है।
इसके परिणाम आगे चलकर अच्छे ही आएंगे। आज भले ही तात्कालिक विजय पर जिसे खुश होना है हो लें।'
(देशबन्धु में 18 फरवरी 2016 को प्रकाशित)
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